हृदय रोगियों को है कोरोना से ज्यादा खतरा, जानें कैसे पहचानें और कैसे करें अपनी सुरक्षा

हृदय रोगियों को है कोरोना से ज्यादा खतरा, जानें कैसे पहचानें और कैसे करें अपनी सुरक्षा

सेहतराग टीम

कोरोना वायरस का खतरा सबसे ज्यादा उन लोगों को है जिसको पहले से ही कोई रोग हो। इसलिए ऐसे लोगों को इस महामारी के समय अपना ज्यादा ख्याल रखने की आवश्यकता है। वहीं ये वायरस फेफड़ों पर ज्यादा असर करता है। लेकिन फेफड़ों के खराब होने पर लोगों की मृत्यु कम हो रही है। अमेरिका, इटली और ब्राज़ील जैसे देशों में जहां कोरोना का अब तक का सबसे खतरनाक हमला सामने आया है, वहां भी इस मामले में मृत्यु दर पांच फीसदी से कम ही रही है। लेकिन जैसे ही कोरोना के साथ ह्रदय रोग के खतरे को जोड़ देते हैं, इस मामले में मृत्यु दर 50 फीसदी पहुंच जाती है, यानी किसी ह्रदय रोगी के कोरोना संक्रमित होने की स्थिति में उसके मरने की संभावना सामान्य कोरोना रोगी से दस गुना ज्यादा होती है। यही कारण है कि विशेषज्ञ ह्रदय रोगियों को कोरोना से बचाने में विशेष सावधानी बरतने की सलाह दे रहे हैं। कोरोना संक्रमण के मामलों में कई बार 35 से 45 वर्ष के युवाओं में भी अचानक मौत की घटनाएं देखने को मिल रही हैं। इसका सबसे बड़ा कारण उनका ह्रदय रोगी होने के साथ-साथ कोरोना की चपेट में आना है।

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ह्रदय रोगियों की कैसे हो पहचान

डॉक्टर बताते हैं कि अगर किसी व्यक्ति को अचानक केवल ह्रदय में हल्का या तेज दर्द होने की शिकायत शुरू हो जाती है तो ज्यादा संभावना इसी बात की है कि यह हार्ट अटैक का मामला है। ऐसे रोगियों को तत्काल अस्पताल पहुंचाना चाहिए। ईसीजी और ईको रिपोर्ट निकालकर डॉक्टर जल्दी ही यह तय कर सकते हैं कि यह हार्ट अटैक का ही मामला है या यह कोई अन्य मामला है।

लेकिन अगर किसी ह्रदय रोगी को पहले एक या दो दिन तक कोरोना के सामान्य लक्षण जैसे थकान, खांसी, बुखार या कंपकंपी महसूस होती है और इसके साथ छाती में दर्द की शिकायत होती है, तो यह कोरोना संक्रमण के साथ ह्रदय रोग की समस्या है। ऐसे मामलों में रोगी को तुरंत अस्पताल ले जाना जरूरी है क्योंकि यह सामान्य कोरोना से दस गुना से ज्यादा घातक साबित हो सकता है।

क्या होता है इस स्थिति में

सामान्य तौर पर हार्ट अटैक के मामले में ह्रदय की कोशिकाओं पर हमला होता है। अगर यह हमला हार्ट के किसी एक हिस्से पर होता है तो बाकी के हिस्से काम करना जारी रखते हैं। ऐसे रोगियों को सही समय पर अस्पताल पहुंचाकर उन्हें ब्लड थिनर (रक्त को पतला करने की दवाएं) देकर या आवश्यकता पड़ने पर स्टंट डालकर उनकी जान बचायी जा सकती है। नजदीक में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध होने के कारण अमेरिका जैसे देश में इस तरह के मामलों में पांच फीसदी रोगियों की भी मौत नहीं होने पाती।

लेकिन जिन रोगियों पर ह्रदय रोग के साथ-साथ कोरोना का हमला भी होता है तो उनमें फेफड़ों के प्रभावित होने की आशंका बढ़ जाती है। इअसे रोगियों का ह्रदय पहले ही पूरी क्षमता के साथ काम नहीं कर पाता, लेकिन फेफड़ों के भी संक्रमित हो जाने से उन्हें ऑक्सीजन भी नहीं मिल पाती और यह उनकी मौत का खतरा बढ़ा देता है।

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